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जिंदगी जीने के लिए ...
सुखी कैसे रहें?

सुखी कैसे रहें? – जिंदगी का रहस्य

ज कल चाहे किसी के पास कितना बड़ा पद हो, चाहे कितना भी पैसा हो लेकिन वो अंदर से सुखी नहीं है। ऐसा क्या कारण है, ऐसा क्यों है आज हम इसी पर बात करते हैं और यह जानने की कोशिश करते हैं कि सुखी कैसे रहें? और सुखी जिंदगी का रहस्य क्या है ?

सही समय का इन्तजार करो

जीवन को इस तरह ग्रहण करो मानो वह एक दावत हो जिसमें तुम्हें शालीनता के साथ पेश आना है। जब तश्तरियां तुम्हारी ओर बढ़ाई जाएं, अपना हाथ बढ़ाओ और उसमें से थोड़ा-सा उठा लो। यदि कोई तश्तरी अभी तक तुम्हारे पास नहीं लाई गई है, तो धीरज के साथ अपनी पारी की प्रतीक्षा करो। कामना से अधीर होने की, ईर्ष्या करने की और किसी भी चीज के लिए विचलित होने की जरूरत नहीं है। जब तुम्हारा समय आएगा, तुम्हारा प्राप्य तुम्हें अपने आप मिल जाएगा।

अपनी ताकत और कमजोरियों को परखो

अपने साथ ईमानदारी से पेश आओ। अपनी शक्तियों और कमजोरियों का सही आकलन करो। खुद से सवाल करो कि तुम जो कुछ होना चाहते हो, उसके लिए क्या तुम्हारे पास आवश्यक क्षमता है? किसी विशेष क्षेत्र में दक्ष होना या कोई काम पूर्ण कुशलता के साथ करने की इच्छा रखना एक बात है और वस्तुतः उसमें दक्ष होना व उस काम को पूर्ण कुशलता से कर पाना दूसरी बात है।                            (सुखी कैसे रहें?)

यथार्थ की राह पर चलो

जिस तरह से किसी खास क्षेत्र में सफलता पाने के लिए कुछ खास योग्यताओं की आवश्यकता होती है, उसी तरह उसके लिए कुछ खास त्याग भी करने होते हैं। किसी भी अन्य चीज की तरह बुद्धिमता पूर्ण जीवन की भी एक कीमत है। उच्चतर जीवन जीने के प्रयास में जो भी चीजें आवश्यक हैं, उन सभी पर विचार करो और फिर इसके लिए जो भी सांसारिक कीमत चुकाना आवश्यक हो, बे धड़क होकर चुकाओ, लेकिन यदि अपने स्वभाव का ईमानदारी से मूल्यांकन करने के बाद तुम्हें लगे कि तुम इसके लिए सक्षम या तैयार नहीं हो, तो यथार्थ की राह पर चलो और तुरंत उस इच्छा से अपने आपको मुक्त कर लो।

जो आपके वश में नहीं उसका पीछा छोड़ो

स्वाधीनता और प्रसन्नता, दोनों की शुरुआत इस एक सिद्धांत की साफ समझ से होती है कि कुछ चीजें मनुष्य के वश में हैं और कुछ उसके वश से बहुत दूर। उदाहरण के लिए मनुष्य की अपनी राय, उसकी आकांक्षाएं, अभिलाषाएं । इन सभी चीजों से उसका सरोकार उचित ही है, क्योंकि इन्हें वह सीधे प्रभावित कर सकता है। आंतरिक जीवन की विषय वस्तु क्या होगी, उसका चरित्र क्या होगा यह वह क्षेत्र है, जहां मनुष्य खुद चुनाव कर सकता है। वहीं दूसरी ओर कुछ चीजें मनुष्य के नियंत्रण से बाहर हैं। जैसे उसका शरीर, जन्म, मृत्यु इत्यादि। ऐसे में यह याद रखना आवश्यक है कि ये सभी बाह्य मामले हैं, इन पर किसी का कोई वश नहीं है इसलिए इनसे व्यक्ति का कोई सरोकार नहीं होना चाहिए।

जो चीजें आप बदल नहीं सकते उन्हें बदलने कि कोशिश न करो

जिस चीज को तुम बदल नहीं सकते, उसे बदलने या नियंत्रित करने की कोशिश का अंत पीड़ा में ही होता है। जिन चीजों पर तुम्हारा वश है वे हर बाधा या बंधन से मुक्त, कुदरती तौर पर तुम्हारी इच्छा के अधीन हैं, लेकिन जो चीजें तुम्हारी शक्ति के परे हैं, उनका निर्धारण दूसरों की मर्जी से होता है। जो चीजें कुदरती तौर पर तुम्हारे नियंत्रण के बाहर हैं, यदि तुम उन्हें अपनी इच्छा से चलाने को सोचते हो तो तुम्हारे प्रयास निष्फल होंगे। अथवा जिन मामलों का संबंध दूसरों से है, उन्हें तुम अपना बनाने की कोशिश करते हो, तो तुम एक कुंठित, उद्विग्न और दूसरों में दोष खोजते रहने वाले व्यक्ति बन जाओगे। इस मूलभूत नियम को आत्मसात करने पर ही तुम बाह्य स्तर पर प्रभावशाली होकर आंतरिक शांति प्राप्त कर सकते हो।

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अभिलाषा और घृणा पर नियंत्रण रखो

मनुष्य की अभिलाषाएं और घृणा पारे के मिजाज वाले शासक हैं। इनकी हमेशा यही मांग रहती है कि इन्हें खुश रखा जाए। अभिलाषा आदेश देती है कि व्यक्ति कैसे भी अपनी चाहत को पूरा करे। घृणा की जिद यह है कि जो चीजें उसे विकर्षित करती हैं, मनुष्य उनसे दूर रहे। सामान्यतः जब मनुष्य को वह नहीं मिलता, जो वह चाहता है तो उसे निराशा होती है। जब उसे वह मिल जाता है जिसे वह नहीं चाहता तब उसे कष्ट होता है।

ऐसी स्थिति में अगर तुम उन अवांछित चीजों से दूर रहो जो तुम्हारी प्राकृतिक खुशहाली के प्रतिकूल हैं और नियंत्रण के दायरे में भी हैं, तो तुम्हें कभी भी किसी ऐसी चीज का सामना नहीं करना पड़ेगा, जिसे तुम सचमुच नहीं चाहते। यदि तुम बीमारी, मृत्यु या दुर्भाग्य जैसी अपरिहार्य चीजों से दूर रहना चाहते हो जिन पर तुम्हारा वास्तविक नियंत्रण नहीं है, तो तुम न सिर्फ स्वयं को बल्कि अपने आसपास के व्यक्तियों को भी तकलीफ में डालोगे।                                  (सुखी कैसे रहें?)

अपनी खराब आदतों पर अंकुश लगाओ

अभिलाषा और घृणा ताकतवर हैं, फिर भी हैं तो आदतें ही। मनुष्य बेहतर आदतें हासिल करने के लिए अपने को प्रशिक्षित कर सकता है। उन सभी चीजों से, जिन पर तुम्हारा नियंत्रण नहीं है, विकर्षित होने की आदत पर अंकुश लगाओ और उन चीजों से मुठभेड़ करने पर स्वयं को केन्द्रित करो, जो तुम्हारे लिए अच्छी नहीं और तुम्हारे वश में हैं।

अपनी इच्छाओं पर लगाम लगाओ

अपनी इच्छाओं पर लगाम लगाने की पूरी कोशिश करो, क्योंकि यदि तुम कोई ऐसी चीज चाहते हो जो तुम्हारे नियंत्रण में नहीं है, तो निराशा मिलना निश्चित है। साथ ही, इसके कारण तुम उन चीजों की उपेक्षा कर रहे होगे जो तुम्हारे नियंत्रण में हैं और अभिलाषा के योग्य भी। निःसंदेह ऐसे अवसर भी आते हैं, जब व्यावसायिक कारणों से मनुष्य को कुछ पाने के लिए उद्यम करना पड़ता है या कुछ छोड़ना पड़ता है। ऐसे मौकों पर शालीनता, परिष्कार और लचीलेपन का परिचय दो।

हर किसी को अपने नियंत्रण में रखने की कोशिश न करो

जीवन और प्रकृति ऐसे नियमों से संचालित होते हैं, जिन्हें मनुष्य बदल नहीं सकता। जितनी जल्दी तुम यह स्वीकार करोगे तुम्हारे लिए आंतरिक शांति हासिल करना उतना ही आसान होगा। तुम्हारी यह चाह नासमझी है कि तुम्हारी संतानें या जीवनसाथी हमेशा जीवित रहेंगे। जैसे तुम मर्त्य हो, वे भी मर्त्य हैं और मृत्यु का यह नियम मनुष्य के नियंत्रण से पूरी तरह बाहर है। इसी तरह, यह चाहना भी नासमझी है कि कोई कर्मचारी, रिश्तेदार या मित्र त्रुटिहीन हो सकता है। यह उन चीजों को नियंत्रित करने की चाह है, जिन्हें तुम, हकीकत में, नियंत्रित नहीं कर सकते।

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दूसरों पर निर्भर रहना छोडो

हालांकि यह जरूर वश में है कि निराशा हाथ न लगे। लेकिन यह तभी संभव है, जब मनुष्य अपनी इच्छाओं से वशीभूत न हो और तथ्यों के साथ उनका सामंजस्य स्थापित कर सके। अगर तुम्हें स्वतंत्रता की कामना है, तो ऐसी किसी चीज की इच्छा मत करो जो दूसरों पर निर्भर है। अन्यथा तुम हमेशा एक असहाय दास बने रहोगे।                    (सुखी कैसे रहें?)

अपनी स्वतंत्रता की सीमा और प्रकृतिक के विधान की सीमाओं में ताल मेल बैठाओ

यह समझने का प्रयास करो कि स्वतंत्रता वस्तुतः है क्या और यह कैसे प्राप्त की जा सकती है। तुम्हें जो भी अच्छा लगता है, वह करने या पाने का अधिकार स्वतंत्रता नहीं है। स्वतंत्रता आती है यह समझने से कि तुम्हारी अपनी शक्ति की सीमा क्या है और प्राकृतिक विधान ने कौन-सी सीमाएं सभी मनुष्यों पर आरोपित कर रखी हैं। जीवन की सीमाओं तथा अपरिहार्यताओं को स्वीकार कर और उनसे लड़ने-झगड़ने के बजाय उनके साथ संतुलन बनाकर ही तुम स्वतंत्र हो सकते हो। इसके विपरीत, यदि तुम उन चीजों के लिए, जो तुम्हारे वश में नहीं हैं, अपनी इच्छाओं के आगे घुटने टेक देते हो, तो स्वतंत्रता लुप्त हो जाती है। जीवन और प्रकृति ऐसे नियमों से संचालित होते हैं, जिन्हें मनुष्य बदल नहीं सकता। जितनी जल्दी तुम यह स्वीकार करोगे तुम्हारे लिए आंतरिक शांति हासिल करना उतना ही आसान होगा ।।

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